- अमृता पांडे
ठंड अब वापस जा रही है और बसंत ऋतु धीरे-धीरे, चुपके-चुपके दबे पैरों से आ रही है। फाल्गुन और चैत्र बसंत ऋतु के दो प्रमुख मास हैं। बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही तापमान में वृद्धि होने लगती है और सर्दी से निजात मिलती है। मन जो शीत ऋतु में कभी-कभी अवसाद से ग्रसित हो जाता था ,उसे आनंद की अनुभूति होती है ,जीवन में राहत लाता है बसंत। आम में बौर आने लगती है, कोयल पंचम सुर में गाती है, ठंड से ठिठुर रहे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती हुई गेहूं की बालियों और सरसों को देख फूले नहीं समाते हैं। नव पल्लव, नव कुसुम और नवगात की सौगात साथ लेकर बसंत ऋतु आती है इसीलिए तो यह ऋतुराज कहलाती है। बसंती दुशाला पहने धरा का सौंदर्य अद्भुत खूबसूरत लगता है।अंगारों की तरह खिलते लाल बुरांस और सोने की तरह पीले फ्योंली की छटा तो देखते ही बनती है।
बसंत ऋतु को प्रेम की ऋतु भी कहा जाता है । जीवन में गुनगुनी धूप हो ,मंद मंद पवन बहती रहे और क्या चाहिए प्रेम को? अनेक गीतकारों और संगीतकारों ने बसंत को लेकर सुंदर शब्द रचना की हैं और धुन बनायी है…….रुत आ गई रे ,रुत छा गई रे, संग बसंती अंग बसंती रंग बसंती छा गया, मस्ताना मौसम आ गया , पुरवा सुहानी आई रे ,ओ बसंती पवन पागल जैसे गीत बासंती उमंग और उत्साह को और बढ़ा देते हैं ।कई कवियों ने अपनी रचनाओं में बसंत को गाया है ,जिनमें जायसी, सुभद्रा कुमारी चौहान अमीर खुसरो, निराला, गोपालदा नीरज ,दिनकर ,भारतेंदु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद जैसे महान कवि प्रमुख हैं ।बसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है ।कवि देव ने क्या खूब कहा है……..
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के, सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’, कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन, कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि, प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
अपनी उत्तराखंड की तो बात ही क्या कहने ।कहीं भी चले जाइए, प्राकृतिक सौंदर्य भरपूर मिलेगा। और जब बात उत्तराखंड की हो तो हम अपने प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत जी को कैसे भूल सकते हैं ।यूं तो पंत जी ने बसंत पर बहुत कुछ लिखा है लेकिन यहां पर उनकी चार पंक्तियां उद्धृत करना चाहुंगी….
चंचल पग दीपशिखा से धर
गृह मग,वन में आया वसंत
सुलगा फाल्गुन का सूनापन
सौंदर्य शिखाओं में अनंत।
बसंत के आगमन के साथ ही दिन बड़े होने लगते हैं जो इस बात का संकेत है कि यह जागृत होने का समय है। अपने मन मस्तिष्क को जागृत रखें ,अपनी ऊर्जा को सही कार्यों में लगाए, यही संदेश लाता है बसंत हम सब के लिए………