रिपोर्ट : सलिल पांडेय
यह कहानी या गढ़ंत बात नहीं बल्कि पुलिस विभाग में गए जमाने घटी एक सही वाकए की दास्तान है।
पुलिस विभाग में छुट्टी
पुलिस विभाग में नौकरी के दौरान छुट्टी बड़ी मुश्किल से मिलती है । एक तो 24 घण्टे की नौकरी और उस पर मानक के अनुसार फोर्स नहीं । लिहाजा किसी प्रकार काम निकालना होता है । यह तो गनीमत है कि कम तनख्वाह पर होमगार्ड ही इन दिनों पुलिस विभाग की इज्जत बचाए है । वरना तो और भी दिक्कत होती।
पहले मजिस्ट्रेटों संग पुलिस कॉन्सिटेबिल चलते थे, गनर होते थे, अब हट्टा-कट्टा होमगार्ड मिल जाए तो काम चल जा रहा है ।
चलो-चलो मेरे पिता जी भी बीमार थे
कम स्टाफ के चलते एक तो प्रायः 5 दिन की छुट्टी मांगने पर एक या दो दिन की किसी प्रकार मिल जाए तो अहोभाग्य ! कुछ अधिकारी भी ऐसे होते हैं जो छुट्टी के नाम पर ही भड़क जाते हैं । ऐसे ही एक पुलिस उपाधीक्षक हुआ करते थे, वे छुट्टी के आवेदन पर कैसे बहस करते थे ?
उपाधीक्षक- क्यों छुट्टी चाहिए ?
कांसिटेबिल-हुजूर, मेरे पिता जी बीमार हैं, उनके इलाज के लिए छुट्टी चाहिए ।
उपा-चलो चलो, मेरे भी पिता जी बीमार थे तो मुझे छुट्टी नहीं मिली थी ।
इसके बाद कुछ दिन बाद दूसरा कांसिटेबिल छुट्टी की दरख्वास्त लेकर पहुंचा ।
उपा-क्यों छुट्टी चाहिए ?
कां-हजूर ! मेरी माता जी का देहांत हो गया है ।
उपा-,चलो, चलो, मेरी माता जी का भी देहांत हो गया था तो मुझे भी छुट्टी नहीं मिली थी ।
जो भी दरख्वास्त लेकर जाए तो उपाधीक्षक महोदय इसी तर्ज पर दरख्वास्त खारिज कर देते थे।
एक दिन किसी कांसिटेबिल ने दिमाग खर्च किया और दरख्वास्त लेकर पहुंचा ।
उपा-क्यों छुट्टी चाहिए ?
कां-हुजूर ! दो दिन पहले मेरी बहन भाग गई है । उसे खोजने के लिए कम से कम दो दिनों की छुट्टी चाहिए ।
उपाधीक्षक हक्के बक्के ! अब वे कैसे कहें कि मेरी भी बहन भाग गई थी और मुझे छुट्टी नहीं मिली थी ।
तत्काल कांसिटेबिल का दरख्वास्त स्वीकृत किया और आगे से इस तरह की अन्तरपीडा बताना भी बंद कर दिया।