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किसान आंदोलन : लोकतंत्र में हिंसा

– प्रतिभा दुबे

करीब दो महीनों से राजधानी दिल्ली की सीमा पर पंजाब, हरियाणा व अन्य राज्यों के किसानों का प्रदर्शन जारी है, किसानों द्वारा अध्यादेश के जरिए बनाए गए तीनों कानूनों को वापिस लेने की मांग करने के लिए धरना प्रदर्शन का कार्य एवं बंद का आव्हान किया गया और केन्द्र सरकार व नेताओं के बीच कई राउड़ की बातचीत बेनतीजा रही। इस कारण किसान नेताओं ने “26 जनवरी ” हमारे गणतंत्र दिवस के अवसर पर ट्रैक्टर रैली निकालने की इच्छा को सरकार द्वारा 37 शर्तों के साथ मंजूरी प्रदान की गई। सभी कार्य अपने निर्धारित समय पर संपन्न किए गए, एवम गणतंत्र परेड़ का कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद 11 बजे से टैक्टर परेड़ का शुभारंम्भ हुआ।उसके पश्चात आप सभी भली भांति अवगत है, जो हिंसा की गई। क्या कोई भी आंदोलन बिना कोई हिंसा किए पूर्ण किये जा सकते है। जहाँ तक देखा गया है पूर्व की घटनाओं में भी ” नही ” । इस बार भी कुछ इस प्रकार की अप्रिय घटना किसानों द्वारा घटित हुई है जो कि निंदनीय है, किसी भी आंदोलन का अंकुरण कर नेशनल डे तक उसे सिंचित किया जाता है, और एक घृणित आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

गणतंत्र दिवस के अवसर पर जिस प्रकार किसानों द्वारा अशोभनीय कार्य को अंजाम दिया गया एवं जिस तरह से तलवारें लहराई गई, ईंट पत्थर फैंके गए , टैक्टर द्वारा पुलिसकर्मियों को कुचलने की कोशिश की गई। यह कार्य सच में देश के किसानों के लिए इतिहास में कलंक ही है, सोचने वाली बात यह है कि कल तक जो किसान अपने हक के लिए पिछले कई महीनों से शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे थे, आज वह अचानक इस तरह उपद्रवी व्यवहार से अपने राष्ट्र का गौरव और हमारे राष्ट्रिय ध्वज का अपमान करेंगे। यह देश क्या उन किसानों का नहीं जिनके हक की बार की जाती है, क्या देश के गौरव पर किसी प्रकार की आच ना आने देने पर उनकी कोई जिमेदरी नही बनती। कारण जो भी रहा हो, परंतु इस प्रकार के कार्यों से हमारे देश की छवि जरूर धूमिल हुई है।

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