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WhatsApp Policy : गूगल-फेसबुक की वार का हिस्सा

रिपोर्ट : वीरेन्द्र बहादुर सिंह

दिल्ली : मार्केटिंग का एक सिद्धांत है कि अगर कोई आपको कोई वस्तु मुफ्रत में उपयोग करने को दे रहा है तो आप यह समझ लीजिए कि आप खुद एक वस्तु हैं। ह्वाट्सऐप की शुरुआत 2009 में फोटो शेयरिंग अप्लिेकेशन के रूप में हुई थी। 2009 की शुरुआत में ही ह्वाट्सऐप ने स्पष्ट कर दिया था कि ह्वाट्सऐप की सर्विस तमाम यूजर के लिए आजीवन मुफ्रत रहेगी। यूजर्स का डाटा उसके सर्वर पर सुरक्षित रहेगाा और किसी भी थर्ड पार्टी के साथ उसका डाटा शेयर नहीं किया जाएगा।

परंतु 5 जनवरी, 2020 से वह तमाम यूजर्स को एक नोटिफिकेशन भेज रहा है, जिसमें यह बताया जा रहा है कि अगर अब आपको ह्वाट्सऐप का उपयोग करना होगा तो उसे उसकी टर्म्स ऑफ सर्विस 2021 को स्वीकार करना होगा। जिससे पूरी दुनिया मेें ह्वाट्सऐप की टर्म्स ऑफ सर्विस 2021 चर्चा का विषय बन गया है। समाज के लगभग तमाम वर्ग के लोगाें ने इस डिजिटल दादागिरी के सामने बांहें चढ़ा ली हैं और उसके विकल्प के रूप में सिग्नल ऐप डाउनलोड किया जाने लगा है। ज्यादातर यूजर यह जानना चाहतें हैं कि आखिर ह्वाट्सऐप को किस लिए इस टर्म्स ऑफ सर्विस की जरूरत पड़ी हैे?

आज के समय में डाटा ऑयल जितना ही मूल्य रखता है। जैसे कि कॉमोडिटी मार्केट में ऑयल हमेशा ऊंची कीमत रखता है, उसी तरह डिजिटल युग में जिस व्यकित के पास सब से अधिक इलेक्ट्रानिक्स डाटा होगा, वही व्यक्ति मार्केट लीडर बन सकेगा। यह टर्म्स ऑफ सर्विस दूसरा और कुछ नहीं, गूगल और फेसबुक के बीच सीधे मार्केट लीडर बनने की डिजिटल डाटा वार है।

फेसबुक और गूगल के बीच तुलना

फेसबुक द्वारा गूगल के साथ उसकी तुलना करने के लिए एक सर्वे कराया गया था। जिसका निष्कर्ष चौंकाने वाला था। जिसमें यूट्यूब पर जो विज्ञापन प्रदर्शित होते हैं, वे लोगों की पसंद के अनुरूप होते हैं। फेसबुक इस मामले मेे काफी पीछे है। इसके अलावा यूट्यूब पर जो वीडियोे अपलोड होते हैं, उसमें गूगल या यूट्यूबर से वीडियो के संदर्भ में काफी जानकारी ली जाती है। यूट्यूबर द्वारा दी गई जानकारी को गूगल ऐडसेंस को भेजता हैै। उसके बाद उसी के आधार पर विज्ञापन प्रदर्शित किया जाता है। परिणामस्वरूप व्यवसाय करने वाले की जानकारी निश्चित और जरूरत वाले वर्ग तक ही पहुंचती है। जिससे व्यवसाय करने वाले को लाभ होता है।

भविष्य में क्या असर देखने को मिलेगा?

ह्वाट्सऐप जो भी परमीशन यूजर्स से इस समय नई टर्म्स ऑफ सर्विस में ई-लाइसेंस एग्रीमेंट के अनुसार ले रहा है, वह पहले से ही यूजर्स के पास से ह्वाट्सऐप के इंस्टॉलेशन के दौरान मिलती आई थी। जैसे कि कैमरा, कांटैक्ट, आईपी एडेªेस, लोकेशन, माइक्रोफोन, स्टोरेज आदि का समावेश था। सितंबर, 2016 से ह्वाट्सऐप अपना डाटा फेसबुक के साथ शेयर कर रहा है। परंतु यह व्यक्तिगत मामला था औैर अब उसकी विधिवत नई घोषणा की गई है। परंतु ई-लाइसेंस एग्रीमेंट के अनुसार अब तीन बातें जोड़ी गई हैं। जिसमें मोबाइल मैन्युफैक्चर की जानकारी, यूजर की रियल टाइम लोकेशन की जानकारी, चैट्स की जानकारी, ह्वाट्सऐप पे फीचर का उपयोग करने वाले यूजर की पेमेंट डिटेल प्राप्त करने की बात गई है।

ह्वाट्सऐप के डाटा के आधार पर फेसबुक व्यक्ति की ई-प्रोफाइल बनाएगा

ह्वाट्सऐप के उपयोग को ध्यान में रख कर बिग डाटा एनालिसिस और डाटा साइंस टक्नोलॉजी का उपयोग कर के फेसबुक हर व्यक्ति की ई-प्रोफाइल बनाएगा। ई-प्रोफाइल के आधार पर ही व्यक्ति को विज्ञापन प्रदर्शित किया जाएगा। साथ ही ई-फाइनिंसियल प्रोफाइल के आधार पर ह्वाट्सऐप व्यक्ति की आर्थिक परिस्थिति के आधार पर बैंकिंग ऑफर सूचित करेगा। व्यक्ति खुद अपने मन की बात अगर किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहता तो भी वे बातेें ह्वाट्सऐप द्वारा फेसबुक जान लेगा और उसका फायदा किस तरह लिया जा सके, इसके लिए माइक्रो डाटा एनालिसिस पद्धति से प्रयत्न करेगा। जो भारतीय यूजर ह्वाट्सऐप की नई शर्त के साथ इसका उपयोग करेगा। भारत सरकार द्वारा तैयार किए गए पर्सनल डाटा प्रोटक्शन के बिल को जल्दी पास करना जरूरी हो जाएगा। जिसमें हवाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम का भी समावेश करना होगा।

सिग्नल ही क्यों स्ट्रांग अल्टरनेटिव?

जब 5 जनवरी को ह्वाट्सऐप की दादागिरी सामने आने के साथ ही दुनिया मे ह्वाट्सऐप के विरोध में डिजिटल आंदोलन की शुरुआत हुई है। इसमे ह्वाट्सऐप के विकल्प के रूप में सिग्नल अप्लिकेशन पहली पसंद बना है। सिग्नल भारत के साथ दुनिया के तमाम देशों में डाउनलोड मेें नंबर वन पहुंच गया है। भारत के अलावा जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, हांगकांग, स्विटजरलैंड आदि देशों में यह फ्री एप कैटेगरी मेें पहले स्थान पर पहुंच गया है।

क्या है सिग्नल ऐप

  • सिग्नल दुनिया का पहला ऐसा ऐप है, जिसने, एंड टू एंड एन्क्रिप्शन की शुरुआत की।
  • 2009 में याहू से अलग हो कर ब्रायन एक्टन ने ह्वाट्सऐप का निर्माण किया था, उसी व्यक्ति ने 2017 में फेसबुक से अलग हो कर सिग्नल अप्लिकेशन का टेक्स्ट सिक्योर और रेडफोन इन दोनों अप्लिकेशन को एक कर के बनाया।
  • सिग्नल में को-फाउंडर के रूप में मोकसी मार्लिन स्पाइक है। जिसने सर्वप्रथम 2014 में एन्क्रिप्शन विकल्प से सिक्रेट चैट के बारे में बताया।
  • सिग्नल में यूजर की गोपनीयता का पूरापूरा पालन सिग्नल द्वारा किया जाता है।
  • सिग्नल मैसेज के साथ मेटाडाटा के लिए भी एंड टू एंड अप्लिकेशन पूरा करता है।
  • सिग्नल की डाटा गोपनीयता की पॉलिसी समग्र विश्व में एक समान है।

(लेखक “मनोहर कहानियां” व “सत्यकथा” के संपादकीय विभाग में कार्य कर चुके है। वर्तमान में इनकी कहानियां व रिपोर्ट आदि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है।)

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