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सियाचिन ग्लेशियर : जहां भारत और पाकिस्तान बिना युद्ध के ही गंवाते हैं अपने सैनिक

रिपोर्ट : वीरेन्द्र बहादुर सिंह

ठंड के दिनों में ज्यादातर हिमालय बर्फ की सफेद चादर से ढक जाता है। सालों पहले एक फिल्म आई थी- ‘व्हेयर ईगल्स डेयर?’ यानी जहां बाज जैसा खूब ऊंचाई पर उड़ने वाला पक्षी भी नहीं जा सकता।

सियाचिन भी हिमालय की एक ऐसी ही चोटी है, जहां ठंडियों मेे अक्सर हिमस्खलन होता रहता है। सन् 2016 में एक ऐसे ही भयंकर हिमस्खलन की वजह से भारत के 10 जवान बर्फ की शिलाओं के नीचे दब गए थे। उनमें से एक भारतीय जवान हनुमान थापा को जीवित निकाला सका था। परंतु काफी उचित इलाज के बावजूद हिमस्खलन की जंग जीत कर आए हनुमान थापा अंत में बाहर आ कर जिंदगी की जंग हार गए थे।

सियाचिन एक बर्फ से आच्छादित बहुत ही खतरनाक इलाका है। जहां सामान्य संयोगो मेें भी माइनस 25 डिग्री तापमान रहता है। ठंड के दिनों में वहां माइनस 45 डिग्री तापमान हो जाता है। इस इलाके में भारत ने युद्ध के कारण नहीं, पिछले कुछ सालों में हिमस्खलन की वजह से 800 से अधिक जवानों को गंवाया है। वहां बर्फ के ग्लेशियर कभी भी टूट पड़ते हैं और हर साल भारत लगभग 10 जवान उनके नीचे दब कर जान गंवा बैठते हैं। वहां इस बर्फीले इलाके में पाकिस्तान अपने सैनिकोें द्वारा आतेजाते कोई न कोई हरकत करता रहता है। इसी वजह से भारत को अपने सैनिक वहां तैनात करने पड़ते हैं।

सियाचिन का एक व्यूहात्मक महत्व है। भारत के दो दुश्मन देश, चीन और पाकिस्तान की सियाचिन पर नजरें जमी हुई हैं। इसलिए भारत ने इस खतरनाक बर्फ से आच्छादित इलाके में अपने सैनिक तैनात कर रखे हैं। यहां घास तक नहीं उगती। सियाचिन पूरी दुनिया की जलवायु की दृष्टि से बहुत ही खतरनाक युद्ध का मैदान माना जाता है। यह समुद्र तल से 20 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। वहां साल के बारहों महीने बर्फ जमी रहती है। वहां पर्याप्त मात्र मेें आक्सीजन भी उपलब्ध नहीं है।

वहां तैनात जवान रोजाना प्राकृतिक प्रकोप से लड़ते रहते हैं। पानी, दूध और राशन हेलीकाप्टर्स के द्वारा पैराशूट के माध्यम से यहां नीचे गिराया जाता है। सियाचीन जाने क लिए कोई सड़क मार्ग नहीं हैं। विमान के लिए कोई रनवे भी नहीं है। वहां की तेज ठंड की वजह से कभी-कभी वहां तैनात जवान फास्टबाइट नामक बीमारी का शिकार हो जाते हैं। बहुत ज्यादा ठंड होने की वजह से उनके हाथ या पैर के अंगूठे सूख जाते हैं और अकल्पनीय सिर दर्द का शिकार हो जाते हैं।

सियाचिन ग्लेशियर्स से नीचे आने वाले भारतीय जवान कुछ अलग ही तरह के मनुष्य बन जाते हैं। दाढ़ी वाले उनके चेहरे पर एक अलग ही तरह की सख्ती दिखाई देती हैै। उनकी आंखें भी सख्त लगती हैं। तमाम जवान तो स्मृतिदोष का शिकार हो जाते हैं। कुछ अचानक रात में कांपने लगते हैैं। इससे पता चलता है कि सियाचिन की सुरक्षा की हमें क्या कीमत चुकानी पड़ती है।

हां, यह बात सच है कि 1980 मेें जो परिस्थिति थी, उसकी अपेक्षा अब भारतीय जवानों के लिए परिस्थिति काफी बेहतर है। 1980 के बाद के सालों में भारत ने हिमस्खलन के कारण 30 जवान गंवाए हैं। परंतु अब भारतीय आर्मी के पास पहले की अपेक्षा काफी अच्छी इलाज की सुविधाएं हैं। पहले की अपेक्षा अब बहुत कम दुर्घटनाएं होती हैं। यहां मिट्टी के तेल की पाइपलाइन भी डाली गई है। प्रिफेब्रीकेटेड हट्स भी तैयार किया गया है। हाड़ कंपा देने वाली ठंड से बचने के लिए भारतीय जवानों को अब बहुत अच्छे कपड़ दिए जाते हैं। इतना सब कुछ होने के बावजूद सियाचिन ग्लेशियर पर प्रकृति ही सर्वोच्च है। उसके सामने मनुष्य बहुत छोटा है। पर्वत पर की सैकड़ें फुट ऊंची बर्फ की शिलाएं टूटने लगती हैं तो मनुष्य लाचार हो जाता है। सालों से जमी बर्फ की शिलाएं कंक्रीट की दीवारों से भी ज्यादा सख्त होती हैं। बर्फ के ग्लेशियर टूटने का एक कारण ग्लोबलल वार्मिंग भी है।

वहां एक दंत कथा भी है। ग्लेशियर के प्रवेश द्वार पर ओमी बाबा का एक मंदिर है। कहा जाता है कि 1980 में एक जवान की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा सियाचिन की बर्फीली चादर पर आज भी घूमती है। इससे भारत के जवान उस ग्लेशियर पर जाने से पहले ओमी बाबा की आत्मा से आज्ञा लेकर ही ऊपर चढ़ते हैं। किसी को यह बात भले ही अंधभक्ति लगे, परंतु यह भारत के जवानों के लिए ऊर्जा का स्रोत बन जाती है।

इस तरह के खतरनाक ग्लेशियर पर बिना युद्ध के ही सैनिकों को गंवाने वाले भारत और पाकिस्तान आखिर उस ग्लेेशियर पर से अपनी सेना की चौकियां क्यों नहीं हटाते? इसकी वजह भी जान लेना जरूरी है। इस इलाके को गैर सैन्यीकरण की बातें होती तो आई हैं। परंतु अभी जल्दी ही हुए चीन के आक्रमण और पाकिस्तान की हरकतें भारत की सेना को वहां सजग रहने के लिए चेतावनी देती रहती हैं।

दूसरा कारण यह है कि जुलाई, 1949 में भारत-पाकिस्तान के बीच कराची में युद्धविराम का जो समझौता हुआ था, वह समझौता संदिग्ध है। 1947-48 के युद्ध के बाद उस समय एक युद्ध विराम की एक लाइन तय की गई थी, जिसमें सियाचिन के बारे में जो बात हुई थी, उसमें तमाम बातें स्पष्ट न होने के कारण पाकिस्तान कहता आया है कि यह ग्लेशियर उसका है। इस वजह से पाकिस्तान इस ग्लेशियर पर की युद्धविराम रेखा का अपने हिसाब से अर्थघटन करता आया है। इस सभी कारणों से भारत और पाकिस्तान सियाचिन ग्लेशियर पर स्पष्ट समझौता और सुलह के अभाव के कारण दोनों देश युद्ध किए बिना ही अपने अपने सैनिकों को गंवाते रहते हैं।

यहां यह भी देखना जरूरी है कि पाकिस्तान और चीन के बीच सांठगांठ है। भारत के लिए यह बड़ी से बड़ी चिंता की बात है। वहां काराकोटम से मात्र 70 किलोमीटर दूर ही चीन की सेना रहती है, जो भारत को सावधान रहने के लिए चेताती रहती है। मानों कि भारत सियाचिन से सेना हटा लेता है और भविष्य में युद्ध होता है तो चीन और पाकिस्तान दोनों मिल कर भारत और पाकिस्तान द्वारा खाली किए सियाचिन ग्लेशियर पर से भारत पर आक्रमण कर सकते हैं।

इस तरह सियाचिन ग्लेशियर भारत के लिए व्यूहात्मक महत्व का है। और इसी वजह से हिमस्खलन जैसे खतरनाक जोखिम उठा कर भी भारत वहां अपनी सेना को तैनात किए हुए है। इस तरह भारत  पाकिस्तान बना कर बहुत बड़ी कीमत चुका रहा है और चुकाता रहेगा।

(लेखक “मनोहर कहानियां” व “सत्यकथा” के संपादकीय विभाग में कार्य कर चुके है। वर्तमान में इनकी कहानियां व रिपोर्ट आदि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है।)

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