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नशा व व्यभिचार का अड्डा बनता जा रहा है वीर नायकों के अस्तित्व का गढ़

विश्व धरोहर दिवस पर खास

✍️ प्रवीण वशिष्ठ

देश की राजनीति में ऐतिहासिक नायकों पर बहस जोरों पर है। कोई उन्हें कायर कह रहा है तो कोई वीर, स्थिति ऐसी है कि इतिहास के मर्मज्ञों को छोड़कर बानी समाज का हर तबका इतिहास की बहस में शामिल है। समाज सिनेमा के माध्यम से इतिहास को देख और समझ रहा है। ऐसी स्थिति में, इतिहास के जिन नायकों पर आज बहस चल रही है उन्हीं के अस्तित्व की एक पहचान यह धरोहर भी हैं जो कब्जा और कानूनी पेंच के शिकार बने हुए ढह रहे हैं। ऐसे धरोहरों की आड़ में महान नायकों की युवा पीढ़ी गाँजा और शराब पी रहे हैं साथ ही आए दिन छेड़छाड़ की घटना इन ऐतिहासिक इमारतों की आड़ में हो रही हैं।

यह वही युवा पीढ़ी है जिसका इतिहास व अस्तित्व उन इमारतों से जुड़ा हुआ है। इतिहास के महान नायक यह कल्पना भी नहीं किये होंगे कि कायरों की ऐसी भी जमात होगी जहाँ वे तलवार लिए खड़े रहते थे वहीं पर युवा पीढ़ी कभी ताश खेलेगी।एएसआई के संरक्षण सूची के अतिरिक्त हमारे देश में बहुत से दुर्ग, ढुहा, मंदिर-मस्जिद, कब्रगाह, तालाब और जमीनें हैं जो या तो विवादित हैं या सरकारी संरक्षण के अभाव में ढह रहे हैं। इतिहास को आधार बना कर राजनीति करना देश या समाज के लिए जितना प्रासंगिक विषय है उससे कहीं ज्यादे इतिहास के धरोहरों को पुनः संरक्षित करना जरूरी है। अतीत के अस्तित्व की पहचान अगर भूगोल से गायब हो जाएंगे तो पन्नों से उन्हें मिटने में ज्यादे देर नहीं लगेगा।

देश के विभिन्न हिस्सों में बहुत से ऐतिहासिक इमारत ऐसे हैं जिनका मजबूत इतिहास रहा है लेकिन वर्तमान में संरक्षण के अभाव में उनकी हालत खराब है। शाम को अगल-बगल के आवारा लड़के वहाँ सिगरेट व शराब पी रहे हैं। इन इमारतों की आड़ में जुआ व व्यभिचार भी होता रहा है। सरकार कोई भी हो उसका यह दायित्व है कि धरोहरों की नई सूची बनाए और उनका संवर्धन करे। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अतिक्रमण की भूख में बहुत से मंदिरों और इमारतों का अस्तित्व समाप्त किया जा चुका है।

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