पुणे की प्रतिष्ठित नेत्र रोग विशेषज्ञ को एशिया पैसिफिक एकेडमी ऑफ ऑफ्थेल्मोलॉजी वार्षिक सम्मेलन में मिला प्रतिष्ठित पुरस्कार
डॉ. जई केलकर को सफेद पके मोतियाबिंद पर सिलेक्टिव लेजर कैप्सुलोटोमी (एसएलसी) की सुरक्षा और प्रभावशीलता पर आधारित शोध के लिए मिला ‘बेस्ट एब्स्ट्रैक्ट पेपर’ अवॉर्ड

पुणे: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑफ्थेल्मोलॉजी (एनआईओ) की निदेशक और जानी-मानी नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. जई केलकर को हाल ही में एशिया पैसिफिक एकेडमी ऑफ ऑफ्थेल्मोलॉजी (एपीएओ) वार्षिक सम्मेलन में ‘बेस्ट एब्स्ट्रैक्ट पेपर अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें उनके शोध-पत्र ‘’पक चुके सफेद मोतियाबिंद पर सिलेक्टिव लेजर कैप्सूलोटोमी का इस्तेमाल: भारत के लोगों की आँखों का शुरूआती अनुभव’’ (Use of Selective Laser Capsulotomy for Mature White Cataracts: Initial Experience in Indian Eyes) के लिए प्रदान किया गया।
इस उपलब्धि पर शोध-पत्र की लेखिका डॉ. केलकर ने कहा, ‘’’सिलेक्टिव लेजर कैप्सूलोटोमी (एसएलसी) को कैप्सूलेजर भी कहा जाता है। यह एक आधुनिकतम टेक्नोलॉजी है, जिसका इस्तेमाल मोतियाबिंद की सर्जरी में हो रहा है। इसके द्वारा सर्जरी के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से में बेहतरीन सटीकता मिलती है। पके हुए मोतियाबिंद पर हाथों से लगातार कैप्सूलोटोमी करना अक्सर पूर्वानुमान से रहित, मुश्किल और पेचीदगी वाला होता है। यह अनुभवी डॉक्टरों के लिये भी कठिन हो सकता है। इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हम अपने अस्पताल में 2023 से कर रहे हैं और हमें मरीज की सुरक्षा तथा नतीजों के मामले में बेहतर परिणाम मिले हैं। इसलिये हमने यह अध्ययन प्रकाशित किया है, जिसमें एसएलसी की बेहतरीन गुणवत्ता पर रोशनी डाली गई है। यह पुरस्कार मिलने पर हमें गर्व है और हम उम्मीद करते हैं कि इससे ऑफ्थेल्मोलॉजी के क्षेत्र में और भी उन्नतियों के लिये प्रेरणा मिलेगी।‘’
डॉ. केलकर के शोध को उन 12000 ऑफ्थेल्मोलॉजिस्ट्स में से विजेता चुना गया, जिन्होंने दुनियाभर से इस इवेंट में भाग लिया था। यह अध्ययन 6 महीने तक चला था और इसका सैम्पल साइज 30 मरीजों का था, जिनका मोतियाबिंद पूरी तरह से पक चुका था। अपने शोध में डॉ. केलकर ने यह दिखाया कि एसएलसी की विधि में लेजर के इस्तेमाल द्वारा मोतियाबिंद की आगे की परत को सटीक एवं सुरक्षित तरीके से निकाला जा सकता है। इसमें नया लेंस भी बेहतर तरीके से लग जाता है, जिसे मोतियाबिंद निकालने के बाद लगाया जाता है। इस तरह मरीज को दिखाई देने की गुणवत्ता बेहतर हो जाती है।
उन्होंने बताया कि नियो सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल ने मोतियाबिंद की दूसरी सर्जरीज के लिये भी एसएलसी विधि के इस्तेमाल की योजना बनाई है। इसमें आघात के कारण होने वाले मोतियाबिंद, अस्थिर मोतियाबिंद (सबलक्जेटेड), बच्चों के मोतियाबिंद, आदि पर ध्यान दिया जाएगा। इस अध्ययन को एपीएओ एन्नुअल कॉन्फरेंस में पुरस्कार दिया गया है और प्रतिष्ठित इंडियन जर्नल ऑफ ऑफ्थेल्मोलॉजी ने भी इसे सराहा है।