✍️ मनीषा कुमारी, विरार महाराष्ट्र
मिलने को भी कहते हैं, फिर मिल नही पाते हैं
बोलते है बहुत याद करता हूं फिर बात भी नहीं करते हैं,
कैसे जीए यादों के सहारे जब वो मुलाकात ही नही करते हैं
न जानें कैसा हैं ये उनका प्यार कभी हम समझ ही नहीं पाते हैं,
सोचती हूं सुबह से शाम कभी मुलाकात होगी उनसे,
दिल की बाते भी कभी अहसास होगी उनको,
न जाने कब वो लम्हा वो पल आएगा जिंदगी में ,
जब एक दुसरे के लबों पे प्यार की कुछ गुफ्तगू होगी ,
नाराज भी खुद हो जाते हैं, फिर प्यार जताते हैं,
सपने में आकर अपना होने का एहसास भी कराते हैं,
कहते है तुम्हारे ही लिए तो हूं बना है मैं
फिर न जाने वो क्यों वो हर पल मुझसे जी चुराते हैं,
बस कहते मिलना है तुमसे आज बहुत प्यार से बुलाते हैं,
फिर वक्त देकर वो वक्त देना भूल जाते हैं,
क्या खता हुई है हमसे या कोई उनकी मजबूरी है,
कौन सी ऐसी जिम्मेदारियां तले हमदोनों में दूरी हैं,
जब वो प्यार करते है तो ,फिर इजहार करने से कतराते हैं,
ऐसे न जाने कितने सालों से मुझे इंतजार वो कराते हैं,
क्या करूं मैं की वो मेरे हो जाएं कुछ पल के लिए,
कैसा है उनका प्यार जो मुझसे नहीं जताते हैं…