Poem : माँ तेरे हजार स्वरूप हैं…
✍️ मनीषा झा, विरार, महाराष्ट्र
मां तू ही कल्याणमयी है, तू ही ममतामयी हैं,
तेरे ही नाम जगदम्बा है, तेरे ही नाम मां दुर्गा है,
मां तू ही शैलपुत्री तू ही गिरिजा भवानी हैं,
तेरे ही नाम सिद्धिदात्री है, तेरे ही नाम महागौरी हैं।
कभी कालिका तो, कभी महालक्ष्मी बन जाती हो,
भक्तों की रक्षा के लिए दुष्ट राक्षस से भी लड़ जाती हो,
कभी दुर्गा तो कभी पार्वती बन शंकर संग विराजती हो,
शेरों वाली मां, हम भक्तो को हर विपदा से बचाती हो।
जगत के पालनहार हो, भाग्य विधाता कहलाती हो,
विश्व का कल्याण करती, सब कष्टों से बचाती हो,
अपनी कृपा से भक्तो को भवसागर से पार करती हो, .
भक्तों की जिंदगी सवारती हो, अपने सीने से लगाती हो।
हे मां तेरे हजार स्वरूप है, उसमे हम खोए रहते हैं,
तुझे मां, तुझे पिता तुझे ही अपना सर्वस्व मानते हैं,
तुम्हारे बिना इस दुनियां में कोई नहीं है मां मेरा,
आपके शरण में आई हूं, हे जगदंब तुझे पुकारते हैं।
सारी दुनिया तेरे ही कृपा दृष्टि से चलती हैं,
तेरे मर्जी बिना कोई भूखा नही रह सकता हैं,
तू ही श्रृष्टि रचयिता है, ज्ञान प्रकाशिनी मां है,
तू विश्व संचालिनी मां, तू दैत्य संहारिणी मां है।
शक्ति प्रदायिनी, जीवन में हर काज सवारिणी है ,
तू ही जगत जननी मां, तू ही ब्रह्मचारिणी है,
सकंदमाता है तू, तू ही कालरात्रि है,
शुभफलदायिनी है तू ही कष्ट निवारिणी है।
भाग्य बनाने वाली मां दुख को मिटाने वाली है,
मां तेरे रूप हजार है, तेरी महिमा अपरंपार है,
हर हार जीत के रूप में, हर संघर्ष में समायी है ,
कण कण में हर धूप में छांव बन समायी है।
आपका नाम स्मरण से ही मन पावनमयी हो जाता हैं,
एक बार जो तेरा दर्शन हो जाए मन हर्षित हो जाता हैं,
तेरे दर पे जब आते हैं, मन का हर कोना पुलकित हो जाता हैं,
तेरे रूप को सुमिरन कर लूं जीवन सपनो से सुंदर हो जाता हैं।।