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Poem : जो गी रा…..

✍️ शुचि गुप्ता

अरे गाओ तुम फगुआ राग,
घुलेगी ठंडी मीठी भंग।
बढ़ाता मौसम भी अनुराग,
मिले जब अपनों का ही संग।।

जो गी रा सा रा र र….

गगन में उड़ता देखो रंग,
चमकते तेरे गोरी गात।
करेंगे होली का हुड़दंग,
जरा तुम देना मेरा साथ।

जो गी रा सा रा र र….

चले हैं होरी के हुरियार,
लिए हाथों में चटक गुलाल।
हुई है रंगों की बौछार,
ढोल भी करता बड़ा धमाल।

जो गी रा सा रा र र….

मिटा दो मन के सारे बैर,
मना लो उन्हें गए जो रूठ।
पूंछ लो सबसे उनकी खैर,
पिला दो नेह तरल का घूंट।

जो गी रा सा रा र र….

बने हैं मीठे से पकवान,
तनिक दो छोटों को तुम प्यार।
बड़ों का होता है सम्मान,
मना लो खुशियों का त्योहार।

जो गी रा सा रा र र….

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