✍️ शुचि गुप्ता
फागुन आया दरस परस दे, व्याकुल हो निज सुध बुध हारी।
प्रीतम तेरी सुधि कर हरसूं, रंग चढ़ा मुझ पर कचनारी।
छू कर तेरे मनसिज सर से, शांत सरोवर हलचल होती।
प्रीत वधू सी सुभग प्रणय में, ढूंढ रही रति उर तल मोती।
रंग बिरंगे पुहुप कुमुद के, यौवन गंधित तन फुलवारी।
प्रीतम तेरी सुधि कर हरसूं, रंग चढ़ा मुझ पर कचनारी।
पीत गुलाबी हरित वसन हों, केसर नीलम चम चम धानी।
रंग लगाना सुरपति धनु के, लोहित स्वर्णिम मनहर रानी।
मादक ये मौसम अतिप्रिय है, देख कभी चितवन कजरारी।
प्रीतम तेरी सुधि कर हरसूं, रंग चढ़ा मुझ पर कचनारी।
गीत सुधा की सरगम बरसे, मीत नई धुन मधुर सुनाना।
सेज सजाई हृदय कुसुम की, नूतन पल्लव सरस खिलाना।
घोल पिया ये अमि रस रसना, स्वाद मिटे शुचि हिय सब छारी।
प्रीतम तेरी सुधि कर हरसूं, रंग चढ़ा मुझ पर कचनारी।