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अध्ययन के अनुसार 8% से भी कम विचाराधीन कैदियों ने कानूनी सेवाओं का इस्तेमाल किया

 

मुंबई : प्रोजेक्ट-39ए (नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली), प्रयास-टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस और अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन की एक रिपोर्ट बताती है कि जेल में सक्रिय कानूनी सेवाओं की पेशकश करने और विचाराधीन कैदियों, जिनमें से कई विस्तारित अवधि के लिए कैद में रहते हैं, के लिए सामाजिक समर्थन का वातावरण निर्मित करने की तत्काल आवश्यकता है। अध्ययनों से पता चलता है कि 2016-2019 के बीच 8% से भी कम विचाराधीन कैदियों ने कानूनी सेवाओं का इस्तेमाल किया, जिसके वे हक़दार थे। आपराधिक न्याय संस्थानों के बीच समन्वय की कमी, राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाली कानूनी सहायता में कम विश्‍वास, और प्रासंगिक डेटा की कमी विचाराधीन कैदियों के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियां हैं।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पी.एस. नरसिम्हा और बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति तथा महाराष्ट्र राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आर.डी. धानुका द्वारा आज मुंबई में एक रिपोर्ट जारी की गई, जो नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस द्वारा संचालित तीन साल के कार्यक्रम का परिणाम है। यह तीन वर्षीय कार्यक्रम अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन द्वारा समर्थित था और इसमें महाराष्ट्र सरकार भी सहयोगी थी। विचाराधीन कैदियों को कानूनी प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए एक सफ़ल कामकाजी मॉडल विकसित करने के लिए राज्य की आठ जेलों में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था।

विचाराधीन कैदियों के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व में भेद्यता की कई परतों को समझना शामिल है जिनका सामना कैदियों द्वारा किया जाता है, जिससे यह महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि आपराधिक न्याय प्रणाली में सामाजिक कार्य को कानूनी सहायता का एक अभिन्न अंग बनाया जाए। इसके अलावा, बेहतर ढंग से दस्तावेज़ीकरण करने और रिकॉर्ड रखने से न्यायनिर्णयन करने, वकालत की गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी करने और देरी कम करने में मदद मिली है।

रिपोर्ट बताती है कि जेलों, अदालतों और कानूनी सेवा प्राधिकरणों के लिए सुलभ एक सामान मंच पर उपलब्ध एक विस्तृत, राष्ट्रव्यापी, जेल स्तर का डेटाबेस कैदियों के प्रोफ़ाइल, प्रकरण की स्थिति और विचाराधीन कैदियों के लिए आवश्यक सेवाओं के बारे में गहरी समझ विकसित करने में मदद करेगा।

दिसंबर 2021 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी किए गए निष्कर्षों से पता चलता है कि 118% की औसत अधिभोग दर (occupancy rate) के साथ भारतीय जेलों पर भारी बोझ है, जिसमें से अधिकांश कैदी युवा, निरक्षर और सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित हैं, जो कुल कैदी आबादी का 76.1% है। महाराष्ट्र में विचाराधीन कैदियों की 86% की औसत आबादी के साथ औसत अधिभोग दर 149% पाई गई।

अध्ययनों से पता चलता है कि 2016-2019 के बीच 8% से भी कम विचाराधीन कैदियों ने कानूनी सेवाओं का इस्तेमाल किया, जिसके वे हक़दार थे। आपराधिक न्याय संस्थानों के बीच समन्वय की कमी, राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाली कानूनी सहायता में कम विश्‍वास, और प्रासंगिक डेटा की कमी विचाराधीन कैदियों के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियां हैं।

सक्रिय रूप से जेलों में कानूनी सहायता की पेशकश करने वाले इस कार्यक्रम ने 9,570 विचाराधीन कैदियों में से लगभग आधे की रिहाई सुनिश्‍चित करने में मदद की, जिन्होंने ज़मानत के लिए अर्ज़ी दाख़िल करके और अनुपालन शर्तों को पूरा करते हुए इस पहल द्वारा प्रदान की गई सेवाओं तक पहुंच प्राप्‍त की।

युवा अधिवक्‍ताओं और सामाजिक कार्य अध्येताओं ने आवश्यक हस्तक्षेप किया और स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित पेशेवरों का एक संवर्ग विकसित करने में मदद की। इसके अलावा, सामाजिक कार्य अध्येताओं ने कानूनी सेवाओं को मज़बूत बनाने के लिए जेल अधिकारियों, ज़िला और तालुका कानूनी सेवा प्राधिकरणों और पैनल अधिवक्‍ताओं के साथ मिलकर काम किया। यह कार्यक्रम रिहा किए गए लोगों को समाज में पुन: एकीकृत करने और यात्रा, आश्रय और आजीविका सहित उनकी बुनियादी ज़रूरतों की पूर्ति करने की व्यवस्था करने में मदद करता है।

अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन में एक्सेस टू जस्टिस स्पेशलिस्ट और अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में अध्यापन करने वाली देवयानी कक्कड़ ने इस बारे में कहा: “कार्यक्रम की अभिनव सिफ़ारिशों ने विचाराधीन कैदियों के बीच राज्य कानूनी सहायता में उच्च स्तर का विश्‍वास पैदा किया, बेहतर न्यायनिर्णय करना, अधिक न्यायसंगत और व्यावहारिक शर्तों पर ज़मानत आदेश जारी करना, प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना और कानूनी सहायता की पेशकश में समयसीमा कम करना संभव बनाया है। जेल अधिकारियों ने विचाराधीन कैदियों के अधिकारों का संरक्षण सुनिश्‍चित करने में सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल करने की आवश्यकता को भी पहचाना है।”

पूरी रिपोर्ट देखने के लिए, कृपया नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें :

https://publications.azimpremjiuniversity.edu.in/4379/

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