✍️ प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका), ग्वालियर, मध्य प्रदेश
मेरी छोटी सी गौरेया
रोज सबेरे आती है वो,
ची ची करके दाना मांगे
मोहक शोर मचाती है।।
चहचहाट से उसकी रोज़
पूरा घर जीवित हो उठता है ,
प्यारी सी बोली से वो सबके
मन को बहुत लुभाती है ।।
छत पर अपनी मैं रखती हूं
पानी भरा सकोरा निश दिन,
मेरी प्यारी सी गौरेया उसमें
फुदक फुदक कर नहाती है।।
दाना पानी खाकर बस वो
फिर फुर करके उड़ जाती है,
मेरी प्यारी सी गौरेया घर मेरे
रोज सुबह सबेरे आती है।।
मेरा यही निवेदन है सबसे
हर घर में संदेश ये पहुंचना है,
छोटी सी गौरेया को हमको
तपती इस गर्मी में बचाना है।।