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15 साल की उम्र में आंखें खो चुकी हिमानी की 10 साल की मेहनत फली

✍️  स्नेहा सिंह

इंसान चाह ले तो कुछ भी कर सकता है। बस, मेहनत करने की हिम्मत होनी चाहिए। यह बात साबित कर दिखाया है हिमानी बुंदेला नाम की एक प्रज्ञाचक्षु (दोनों आंखों से अंधी) महिला ने। उसने लोकप्रिय गेम शो कौन बनेगा करोड़पति के 13वें सीजन की पहली करोड़पति प्रतियोगी बन कर सभी को चौंका दिया है। इसी के साथ हिमानी इस तरह के लोगों के लिए एक मिसाल बन गई हैं, जो दुर्घटना के कारण शारीरिक विकलांगता का शिकार हो जाते हैं और उनकी आगे जीने की इच्छा खत्म हो गई होती है।

हिमानी ने अपनी मेहनत, लगन और आत्मविश्वास के साथ अमिताभ बच्चन द्वारा पूछे गए तमाम सवालों के सच्चे जवाब दिए और एक करोड़ रुपए जैसी बड़ी रकम जीत ली।

उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के राजपुर चुंगी की रहने वाली हिमानी जन्म से प्रज्ञाचक्षु (अंधी) नहीं थी। जब वह दसवीं में पढ़ रही थी, तभी एक दुर्घटना में उसकी दोनों आंखों की दृष्टि चली गई थी। वह पढ़लिख कर डाक्टर बनना चाहती थी। पर इस दुर्घटना के बाद उसका यह सपना, आंखें चली जाने की वजह से हमेशा के लिए टूट गया। जबकि उसके घर वालों ने उसका काफी सहयोग किया। उसकी हिम्मत टूटने नहीं दी।

परिवार के साथ और सहयोग की ही वजह से हिमानी ने एक बार फिर नई जिंदगी की शुरुआत की। उसने पढ़ाई में ध्यान लगाया। ब्रेल लिपि सीखी और आगे बढ़ने लगी। 12वीं पास करने के बाद उसने डा. शकुंतला मिश्रा रिहेबिलिटेशन यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया और वहां से स्नातक किया।

2017 में उन्हें केंद्रीय विद्यालय में प्राथमिक शिक्षक की नौकरी मिल गई। उनकी पहली पोस्टिंग बलरामपुर केंद्रीय विद्यालय में हुई। 2019 में उनका तबादला आगरा हो गया। यहां वह अपनी नौकरी करते हुए कौन बनेगा करोड़पति की तैयारी करने लगी।

हिमानी के पिता विजय सिंह टूरिज्म के धंधे से जुड़े हैं। कोरोना की वजह से उनका धंधा पिछले दो सालों से बंद पड़ा है। जिसका असर परिवार पर आर्थिक तंगी के रूप में दिखाई देने लगा था। पर हिमानी ने उनकी इस समस्या का समाधान केबीसी में एक करोड़ रुपए जीत कर एक झटके में कर दिया।

हिमानी के परिवार में पिता विजय बुंदेला, मां सरोज, चेतना-भावना-पूजा बहनें और भाई रोहित बुंदेला है। सभी को हिमानी की इस सफलता पर गर्व है।

15 साल की उम्र में दृष्टि गंवाने से ले कर केबीसी में करोड़पति बनने तक का हिमानी का सफर जरा भी आसान नहीं था। हिमानी के कहे अनुसार वह पिछले दस सालों से केबीसी के लिए प्रयत्न कर रही थी। आखिर उसकी मेहनत रंग लाई और किस्मत ने भी उसका साथ दिया। जिस समय उसने एक करोड़ रुपए जीता, उस समय की खुशी शब्दों में व्यक्त करना उसके लिए संभव नहीं है। उसकी इस सफलता में परिवार ने भी उसका पूरा साथ दिया था। प्रज्ञाचक्षु होने की वजह से वह ऑडियो कंटेंट सुन कर केबीसी के लिए तैयारी कर रही थी। पिछले एक दशक से लगातार तैयारी करने की वजह से उसका जनरल नॉलेज बहुत अच्छा हो गया था।

वह केंद्रीय विद्यालय में प्राथमिक शिक्षक है। इसलिए बच्चों को पढ़ाने का अनुभव भी उसकी सफलता में काफी सहायक रहा। उसका कहना है कि उसकी यह सफलता अकेली की नहीं है। इसमें उसका परिवार भी सहयोगी है।

जब उससे पूछा गया कि केबीसी में जीती गई रकम को ले कर उसकी क्या योजना है तो जवाब में उसने कहा कि वह ऐसे विकलांग बच्चों के लिए कुछ करना चाहती है, जो समाज की मुख्य धारा से दूर हो जाते हैं। उनकी जिंदगी कैसे अच्छी बने और किस तरह उनका समग्र विकास हो, इसके लिए जीती गई रकम से वह एक सेंटर खोलना चाहती है।

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