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स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी पूंजी है

– वीरेन्द्र बहादुर सिंह

बहुत पहले की बात है। एक गांव में एक धनी आदमी रहता था। उसके पास बहुत पैसा। उसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी। लेकिन वह बहुत आलसी था। अपने सारे काम वह नौकरों से करता था और खुद पूरे दिन सोता रहता था या फिर अय्याशी करता था।

धीरे-धीरे वह एकदम निकम्मा हो गया। उसे ऐसा लगता था जैसे वह सबका मालिक है। क्योंकी उसके पास बहुत पैसा था। उस पैसे से वह कुछ भी कर सकता है, खरीद सकता है। यही सोच कर वह दिन-रात सोता रहता था।

लेकिन कहा जाता है कि बुरी सोच का नतीजा भी बुरा होता है। बस ऐसा ही कुछ उस व्यक्ति के साथ हुआ। कुछ समय बाद उसे ऐसा महसूस होने लगा कि उसका शरीर शिथिल होने लगा है। उसे हाथपैर हिलाने में भी तकलीफ होने लगी है। यह देख कर वह आदमी परेशान परेशान रहने लगा। उसके पास पैसा तो था ही, उसने शहर से बड़े-बड़े डॉक्टर बुलाए और खूब पैसा खर्च किया। लेकिन उसका शरीर ठीक नहीं हुआ। इससे वह बहुत दुखी रहने लगा।

एक बार उसके गांव से एक साधु गुजर रहे था। साधु को उस आदमी की बीमारी के बारे मेें पता चला। साधु ने उस आदमी के नौकर से कहा कि वह उस आदमी की बीमारी का इलाज कर सकते हैं। नौकर उस आदमी के पास गया और साधु के बारे में सब कुछ बताया। उस आदमी ने तुरंत साधु को अपने यहां बुलवाया। लेकिन साधु ने जाने से इनकार करते हुए कहा कि वह उसके जाएंगे। अगर उस आदमी को ठीक होना है तो वह खुद चल कर मेरे पास आए।

वह आदमी परेशान हो गया, क्योंकी वह असहाय था। वह बिलकुल चलफिर नहीं पाता था। लेकिन जब साधु आने को तैयार नहीं हुए तो हिम्मत कर के बड़ी मुश्किल से वह साधु से मिलने पहुचा। पर साधु वहां थे ही नहीं। वह आदमी दुखी मन से लौट आया। इसके बाद तो रोजाना का यही नियम बन गया। साधु रोज उसे बुलाते। लेकिन वह आदमी जब भी आता, साधु उसे नहीं मिलता। इसी तरह तीन महीने बीत गए। धीरे-धीरे उस आदमी को लगने लगा कि वह ठीक हो रहा है। उसके हाथ-पैर भी धीरे धीरे काम करने लगे हैं। अब उस आदमी की समझ में सारी बात आ गई कि साधु उससे क्यों नहीं मिलते। लगातार 3 महीने चलने से उसका शरीर काफ़ी ठीक हो गया था।

एक दिन जब साधु उसे मिले तो उन्होंने उस आदमी को बताया कि बेटा जीवन में कितना भी धन कमा लो, लेकिन स्वस्थ शरीर से बड़ा कोई धन नहीं होता।

यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है। पैसा कितना भी कमा लो, लेकिन स्वस्थ शरीर से बढ़ कर कोई पूंजी नहीं होती।

 (लेखक मनोहर कहानियां एवम् सत्य कथा के संपादकीय विभाग में कार्य कर चुके है)

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