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Chattarpur : 44 वर्षों बाद मंदिर प्रांगण में हो रहे महोत्सव से दर्शकों में बढ़ रहा खजुराहो का आकर्षण

कलाकारों की मनमोहक प्रस्तुतियों से ओत-प्रोत हुए दर्शक

रिपोर्ट : निर्णय तिवारी

छतरपुर, (म.प्र.) : अंतरराष्ट्रीय 47वे खजुराहो नृत्य महोत्सव देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी अपनी ख्याति के लिए जाना जाता है। जहां कलाकार मंच पर अपनी प्रस्तुति देने के उपरांत अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं। इस बार खजुराहो अंतरराष्ट्रीय महोत्सव में अधिक से अधिक पर्यटन को आकर्षित करने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश टूरिज्म एवं मध्य प्रदेश सांस्कृतिक विभाग, अलाउद्दीन खान संगीत एकेडमी के द्वारा और पुरातत्व विभाग के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय नृत्य महोत्सव लगभग 44 वर्षों के बाद वापस अपनी यथास्थिति मंदिर प्रांगण में आयोजित किया जा रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्य खजुराहो को पर्यटन से जोड़ना और अधिक से अधिक पर्यटकों को खजुराहो की ओर आकर्षित करना रहा है। जिसके लिए इस बार नृत्य महोत्सव में अनेक प्रकार की गतिविधियों का भी संचालन भी किया जा रहा है। जिसमें 8 मार्च नेपथ्य कला संगोष्ठी टेराकोटा सूती वस्त्र उद्योग और भी मनोरंजक स्टाल लगाए गए हैं तो वही राजस्थान का सुप्रसिद्ध कठपुतली नृत्य लोगों की आकर्षण का केंद्र बना हुआ है यहां कला प्रेमियों को कला से जोड़ने के लिए कला वार्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है जिसमें देश विदेश के कलाप्रेमी कला को करीब से समझने का प्रयास कर रहे हैं जिसमें अलग-अलग व्याख्याता द्वारा खजुराहो के मंदिरों और अन्य संदर्भों पर गहन शोध के उपरांत लोगों को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।

प्रथम प्रस्तुति पूर्णाश्री रावत द्वारा ओडीसी नृत्य की एकल प्रस्तुति दी गई आज अपनी प्रस्तुति मैं राधा कृष्ण से चंदन के लेप का आग्रह करते हैं और उनसे चोटी बांधने को कहते हैं एवं आभूषणों को सही करने का आग्रह करते हैं क्योंकि प्रेमा लंगन के बाद सब कुछ अस्त-व्यस्त हो चुका है।

इसके बाद दूसरी प्रस्तुति में राधा कृष्ण से मिलने को बहुत लालआयत हैं और अपनी सखी से अनुरोध करती हैं की वह उन्हें कृष्णा से एकाकार दे इस प्रस्तुति में सखी और कृष्णा काल्पनिक पात्र है जिसमें इनके द्वारा एक सपना देखा जाता है जिसमें राधा अपने प्रिय से मिलने बाहर जाती हैं सब डरते हैं कि राधा के ससुराल वाले उसे देख लेंगे तो वह दीपक बाहर रखते हैं और उनके पैरों में एक कांटा चुभ जाता है उनके द्वारा रास्ते में एक सपना देखा जाता है और अंत में उनकी कृष्ण से मुलाकात होती है।

पूर्णाश्री राउत रायपुर छत्तीसगढ़ की एक अभ्यासरत ओडीसी नृत्यांगना और कोरियोग्राफर है उन्होंने गुरु केलुचरण महापात्रा से कला विकास केंद्र कटक और उड़ीसा में प्रशिक्षण प्राप्त किया 1 वर्ष से अधिक अवधि तक खैरागढ़ विश्वविद्यालय के उड़ीसी विभाग में शिक्षा दी जगन्नाथ मंदिर में प्रतिवर्ष 80 प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण देते हैं समय के साथ-साथ उन्होंने मूल शास्त्रीय नृत्य को बरकरार रखते हुए समसामयिक ऊर्जा के साथ विशिष्ट शैली में विकसित कि। पूर्णाश्री मिश्रा द्वारा समय-समय पर निर्धन बच्चों के लिए भी कार्यशाला का आयोजन किया जाता है और वह मूक बधिर और दृष्टिहीन विद्यार्थियों को रायपुर के मत्थापुरैन के स्थानीय विद्यालय में शिक्षा देती हैं इस कार्य के लिए सरकार के कल्याण विभाग द्वारा उन्हें पुरस्कार भी दिया जा चुका है देश के बाहर 4 दशकों से अपनी समर्पित प्रस्तुतियों के साथ ही इन्होंने स्वयं को कला के रूप में समृद्ध किया 2019 में पूर्णाश्री ने स्वयं द्वारा स्थापित श्री नृत्य प्रज्ञा ओडीसी नृत्य अकादमी में अध्ययन के रूप में दसवे वर्ष में प्रवेश किया है और वहां यह युवा शिक्षार्थियों को ओडीसी नृत्य सिखा रही हैं।

खजुराहो नृत्य महोत्सव में दूसरी प्रस्तुति अभिजीत दास कुचिपुड़ी की रही जिसमे भरतमुनि अपने शिष्यों से कहते हैं मैं उस नाट्यशास्त्र को पढ़ने जा रहा हूं जिसे स्वयं ब्रह्मा ने मुझे बताया है और इसके लिए मैं उन शिव की वंदना करता हूं अष्ट राज है और नाट्य शास्त्र के रचयिता है तो वहीं दूसरी प्रस्तुति में धरती माता के चरित्र का वर्णन किया जिसमें बताया गया कि आप विभिन्न रत्नों की स्वामिनी है और मैं आपका अभिवादन करता हूं।

ऊर्जा से परिपूर्ण भारतीय शास्त्रीय नृत्य में समृद्ध परंपरा के बड़े पक्षकार और प्रणेता है नृत्य की समृद्धता के लिए आपके द्वारा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका, और एशिया के अनेक शहरों में नृत्य प्रस्तुतियां दी गई और देश-विदेश के कई शहरों में शास्त्रीय नृत्य को प्रस्तुत किया आपकी उपलब्धि के रूप में जर्मनी की डांस पत्रिका में कुचिपुड़ी के युवा पुरुष नृतक के रूप में आप पर प्रकाशित लेख और नृत्य की ऑनलाइन पत्रिका के स्तंभकार होना है।

नृत्य महोत्सव में पांचवें दिन की अंतिम प्रस्तुति भारती शिवाजी एवं साथी की मोहिनी अट्टम समूह के द्वारा प्रस्तुति दी गई। जिसमें सर्वप्रथम डांस फॉर्म की तकनीक की मुख्य विशेषताएं देखी जाती हैं पंथुवराली, अष्टपदी के बाद मोहलम मैं गीता गोविंद से एक देसी शैली में केरल का गीत प्रस्तुत किया गया नृत्य में गोपियों के साथ कृष्ण की रासलीला का मनमोहक और आश्चर्यचकित करने वाला नृत्य बाले नृत्य की प्रस्तुति दी जिसने सभी दर्शकों को एकटक देखने को मजबूर कर दिया।

अल्प समय में ही शास्त्रीय नृत्य मोहिनीअट्टम की गौरवशाली कला में अपरिमेय संभावनाओं को तराशा मोहिनीअट्टम के सौंदर्य और संपूर्णता को गहराई से समझने वाली भारती शिवाजी अपने अनुभव के चलते उच्च कोटि के नाटकों का नृत्य निर्देशन कर चुकी हैं जिसमें कावलम, नारायण पाणिकर, निर्देशन दूतवाक्यम, अभिज्ञानसकुंतलम, मोहिनीअट्टम के क्षेत्र में आपके द्वारा किए गए अथक प्रयासों के लिए आपको नाट्य अकेडमी साहित्य कला परिषद द्वारा सम्मानित भी किया गया तो आपके द्वारा कला और सौंदर्य पर लिखी तीसरी पुस्तक का विमोचन प्रसिद्ध जयपुर साहित्य महोत्सव में किया गया आपको गिरल सरकार द्वारा मोहिनीअट्टम के क्षेत्र में किए गए योगदान के लिए पुरस्कृत किया गया है

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